वेद-शास्त्रों में हास्य
वेद भी चुहलबाज़ी, हास्य और ठिठोली से अछूते नहीं हैं। इसका प्राचीनतम उदाहरण ऋग्वेद (10 .86) का वृषाकपि सूक्त है। इसमें तीन पात्र हैं, इंद्र -इंद्राणी और वृषाकपि। वृषाकपि इंद्र के मित्र या छोटे भाई जैसे हैं। कहा गया है कि 'उपेंद्रहरो विष्णुवृषाकपि: (3.3. 130) वृषाकपि की पत्नी का नाम वृषाकपायी है। अमरकोश के अनुसार वृषाकपायी लक्ष्मी -पार्वती का ही एक पर्याय है।( 3.3 156)। देवर- भाभी के मध्य पारस्परिक हास्य और चुहल की परंपराएं यहीं से प्रारंभ हुईं। वृषाकपि इंद्राणी (भाभी) को शब्दों से चिढ़ाता है, तो इंद्राणी कहती है, "यह शैतान है, हिंसक है ...मुझे अवीरा अर्थात तू तो स्त्री ही नहीं है...कहता है "मेरा मन करता है कि वराह का पीछा करने वाला कुत्ता इसके कान काट कर ले जाए। इंद्र हंसते हुए इंद्राणी को समझाते हैं। कहते है, "यह अबोधबालक है, नासमझ है, पर मन का बुरा नहीं है। मुझे यह और इसकी पत्नी वृषाकपायी अत्यधिक प्रिय है। तुम इस पर क्रोध मत करो। इस प्रकार वृषाकपि और इंद्र का साहचर्य ऐसा ही है, जैसे संस्कृत नाटक में नायक और विदूषक का। कुछ वैदिक अनुष्ठान ऐसे हैं, जिनमें हास्य आवश्यक अ...