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आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत पैरोडी के शास्त्रीय निहितार्थ ---------------------------- पैरोडी को हास्य की एक समृद्ध विधा माना गया है । पैरोडी अर्थात नकल-अनुकृति मिमिक्री ;शब्द, भाव, भाषा, स्थिति और ध्वनि की हो सकती है । नकल को हास्य का जनक भी कहा गया ।पाश्चात्य देशों में इसे Burlesque 'बर्लेस्क'कहा गया अर्थात साहित्य, संगीत, नाटक आदि के अंतर्गत हास्यास्पद प्रयोग । 'बर्लेस्क' इतावली  'बर्लेस्को' से निकला है , जो बदले में इतावली 'बुर्ला' से लिया गया है,जो हास- परिहास-उपहास से संबंधित है। 'बर्लेस्क' को कैरीकेचर और पैरोडी के व्यापक अर्थ में भी लिया जाता है। पैरोडी में किसी भी विशिष्ट शैली या लेखक की ऐसी हास्यास्पद नकल- अनुकृति होती है जो गंभीर भावों को हास्य में परिवर्तित कर देती है । ऑर्थर साइमन जैसे विद्वान पैरोडी के बारे में लिखते हैं कि Love-Admire and Respect  the original admiration and Laughter is the very essance of the act of art of Parody अर्थात पैरोडी में मूल के प्रति प्रेम और आदर में कमी नहीं आनी चाहिए। अच्छी पैरोडी का सौंदर्य उसकी म