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श्रील प्रभुपाद की 125 वीं जन्म जयंती को समर्पित , आध्यात्मिक क्रांति के गाँधी श्रील प्रभुपाद

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 कृष्णकृपामूर्ति श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का पुण्य आविर्भाव 1896 ई. में कोलकाता में हुआ था । अपने गुरु श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी से 1922 में  भेंट होने और विधिवत्  दीक्षा लेने के पश्चात् उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन वैदिक संस्कृति के प्रसार  और श्रीकृष्ण भक्ति को समर्पित कर दिया । उनके ज्ञान और भक्ति  मार्ग की प्रशस्ति हेतु गौड़ीय वैष्णव समाज ने 1947 में उन्हें 'भक्तिवेदांत 'की उपाधि से अलंकृत किया । 1950  में श्रील प्रभुपाद ने गृहस्थ जीवन से अवकाश लेकर वानप्रस्थ में प्रवेश किया और 1959 में उन्होंने  संन्यास ग्रहण किया। श्री राधा -दामोदर की शरण में ही उन्होंने जीवन का महनीय कार्य किया और श्रीमद्भागवत् पुराण का अनेक खंडों में अनुवाद और व्याख्या की । गुरु आज्ञा से  वे 1965 में संयुक्त राज्य अमेरिका गए । उन्होंने 60 से अधिक कालजयी ग्रंथों का प्रणयन किया और 1966 में  अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की । उन्होंने अमेरिका में भारत के अध्यात्म- दर्शन- सांस्कृतिक और भक्ति दूत के रूप में कार्य किया ।  आपश्री की रचनाएं 50 से अधिक भाषाओं में अनुदित ह