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हास्यम्-लास्यम्😊

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पजामा- 'नाडा' और क'नाडा'😊😊😊 कनाडा ने खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की आत्मा को परमात्मा से मिलाने का आरोप भारत सरकार पर मढ़ दिया । भारत सरकार ने भी आनन-फानन  में कनाडा सरकार के 'सर' पर 'कार' चलाने का मूड बना लिया और अब भारत सरकार कनाडा के पाजामे का 'नाडा'( मालवा के कवि मित्रों से साभार)😊😊 उसी प्रकार खोल रही है, जैसे पुरुष प्रकृति के भेद और बंधन खोलता है। अच्छी बात है... 👍 धूमिल के शब्दों में क्षमा के साथ कहूँ तो आज वैश्विक राजनीति में भी हिजड़े 'लिंगबोध' की बात करते हैं और गणिकायें 'आत्मशोध' की ।  कौवे भी इस फिराक में रहते हैं कि कब  हंसों  को कोढ़ी कहने का मौका मिले । वैसे क्या दिक्कत है....? यदि भारत सरकार यह गर्व से कहे कि कश्मीर और खालिस्तान की बात करने वालों की सुपारी हम ही यमराज को देते हैं । लेकिन भारत के संस्कार हैं कि वो शत्रुओं की भी लंबी आयु की कामना करता है , 'जीवन्तु मे शत्रुगणा: सदैव' वैसे भारत को अमेरिका की रीति-नीति अच्छे से समझनी होगी, क्योंकि यथा समाचार निज्जर की हत्या की सूचना एफ बी आई ने ही कनाडा को दी

तत्र ही 'क्यों'रमन्ते देवता😊😊?

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  यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र ही 'क्यों' रमन्ते तत्र देवता:??😊😊😊 अब तक हम सुनते आए हैं कि महिलाओं की 'दिल' से इज्जत करनी चाहिए । आज से हम 'बिल' से इज्जत करेंगे । यह जानने योग्य है कि जिस देश में सावित्री, अदिति, लोपामुद्रा ,अपाला और घोषा जैसी महिलाएँ वेद मंत्रों  की दृष्टा के रूप में देवताओं के लिए भी पूजनीय रही है, उस देश में नारी सम्मान के लिए अधिनियम लाया गया है । वेदों ने स्त्री- पुरुष, दोनों को शासक चुनने एवं युद्ध में भाग लेने की स्वीकृति-अधिकार दिया है ।महिलाओं को समान शिक्षा अधिकारी और पुरुष के धन ,बल ,यश और कीर्ति  का कारक माना है  । उस नारी शक्ति के वंदन  के लिए अब हम 'एक्ट' के थ्रू 'रिएक्ट' करेंगे।  वैसे हमेशा पुरुषों ने महिलाओं को आगे बढ़ाया है। जब भी बस- सिनेमा- रेल की लाइन लंबी होती है, तो पुरुष उदारतापूर्वक टिकट लेने के लिए महिलाओं को आगे बढ़ा देता है।😊 कहीं ऐसा तो नहीं कि फिर इन पुरुषों ने षडयंत्र पूर्वक उन्हें लोकसभा- विधानसभा का टिकट लाने के लिए आगे बढ़ा दिया हो । हे नारियों,इन नारों; क्षमा से करें पुरुषों से सावधान रहने

कवि-कविता और कवि सम्मेलन का इतिहास

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कवि -कविता और कवि सम्मेलन का इतिहास वेद को 'देवों का अमर काव्य' कहा गया है--"देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति'के वैदिक वचन में देव के काव्य के रूप में वेद का ही निर्देश किया गया है और वेद के निर्माता परमात्मा के लिए वेदों मेंअनेक जगह 'कवि' शब्द का प्रयोग किया गया है। इसलिए वेद स्वयं काव्यरूप है और उसमें काव्य का सम्पूर्ण सौन्दर्य पाया जाता है। इसलिए साहित्यशास्त्र में काव्य सौन्दर्य के आधायक जिन गुण, रीति, अलङ्कार, ध्वनि आदि तत्त्वों का विवेचन किया गया है ,वे सभी तत्त्व मूल रूप में वेद में पाये जाते हैं। वेदों में रचनाके माधुर्य, ओज और प्रसादादि गुणों के उदाहरण अनेक स्थानों पर पाये जाते हैं। गुणों के आधार पर ही रीतियों का निर्धारण होता है। इसलिए रीतियों के उदाहरण भी वेद में खोजे जा सकते हैं। उपमा और रूपक आदि अलङ्कारों की तो वेदों में भरमार है। कवि शब्द का प्रथम प्रयोग इंद्र के लिए हुआ है और उसे असीम ओजस्वी युवा कवि के रूप में वर्णित किया गया है। 'युवा कविरमितौजा अजायत' । ऋग्वेद १-११-४ कवि की तुलना प्रजापति ब्रह्मा से की गई और कहा गया- अपा

हिन्दी दिवस विशेष

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हिन्दी ने अपनी 'माँ' संस्कृत से ग्रहण किया गुण-धर्म और स्वरूप यह सुस्थापित सत्य और तथ्य है कि हिंदी भाषा की आदि जननी संस्कृत है । संस्कृत,पाली,प्राकृत और  अपभ्रंश  जैसे भाषाई महासागर में अवगाहन करती हुई हिंदी आज दुनिया की दिव्य सौंदर्यमयी  और परिष्कृत भाषा के रूप में  प्रकट हुई है । हमें यह भी जान लेना आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं में (उर्दू या आधुनिक कश्मीरी जैसी भाषाओं को छोड़कर) 50 से 80% शब्द पहले से ही संस्कृत से आए हैं, यह भी सर्वथा सत्य है । भारत की संविधान निर्मात्री सभा में  इस बात पर विवाद हुआ कि संस्कृतनिष्ठ हिंदी से उर्दू भाषी तथा अन्य वर्गों को कठिनाई होगी। इसलिए उन्होंने उर्दू मिश्रित हिंदी का एक आंदोलन शुरू किया और उस हिंदी को 'हिंदुस्तानी' नाम दिया। जिसका विरोध श्री पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविंद दास जैसे विद्वानों ने किया और हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का अभियान छेड़ा और परिणाम स्वरुप 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने निर्णय दिया कि भारत की राजभाषा हिंदी होगी ,'हिंदुस्तानी' नहीं। संविधान के अनुच्छेद 351 में स्पष्ट किया गया कि हमारे द्वारा स्

....अंतिम दिनकर

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पहले वीर रस के बारे में -----------–------------- शृंगारहास्यकरुणरौद्रवीर भयानका: । वीभत्सादभुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाट्येरसा:स्मृताः । रसों का यह क्रम आचार्य मम्मट ने भरत- नाट्यशास्त्र से ज्यों का त्यों उतार लिया है, और रसों का यही क्रम निर्धारित किया है । इसमें वीर रस पांचवे स्थान पर है। इन रसों के अंत में, यद्यपि इसकी गणना यहाँ नहीं की गई; किंतु निवृत्ति धर्म प्रधान, मोक्ष दायक 'शांत रस' आता है । यह ज्ञातव्य है कि महाकवि कालिदास, भामह और दंडी ने भी भरतमुनि के "अष्टौनाट्येरसा:स्मृता:" स्वीकार किया है। रस कोई भी हो अथवा किसी भी रस की कविता हो, उसकी अपेक्षा "सद्य: परनिवृत्ति"- अलौकिक आनंद अनुभूति या रसास्वादन ही काव्य का मुख्य प्रयोजन है । कवियों को यह जानना चाहिए, विशेष रूप से वीर रस के कवियों को कि' कवि' शब्द का पहला प्रयोग देवराज इंद्र के लिए हुआ है। उन्हें असीम 'ओजस्वी युवा कवि' के रूप में वर्णित किया गया है । 'युवकविरमितौजा अजायत:' ऋग्वेद-१-११-४ वीर रस का वर्ण 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' कहा गया है । भानुदत्त के अ

दुष्यंत ने ग़ज़ल को 'शस्त्र' और दीक्षित दनकौरी ने 'शास्त्र' बनाया

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मैं ग़ज़ल शब्द के अर्थ, भाषा, उत्पत्ति,व्युत्पत्ति या निष्पत्ति के बारे में बता कर कोई पुनरावृति नहीं करूंगा अथवा ग़ज़ल में प्रेमी व प्रेमिका के मध्य प्रेम दशाओं में; अनुनय, विनय, मिलन, वियोग, जलन, पीड़ा, उपालंभ को भी विश्लेषित नहीं करूंगा । ग़ज़ल क्या दुनिया की कोई भी लेखन विधा हो, वह प्रेम की विधि -विधान, रूप -स्वरूप और प्रक्रिया से अछूती नहीं रही । प्रेम की इन दशाओं पर 'शास्त्र' लिखे गए और 'शस्त्र' चलाए गए । महाकवि दिनकर जी सही कहते हैं ," खोजता पुरुष सौंदर्य, त्रिया प्रतिभा को, नारी चरित्र बल  को, नर सिर्फ त्वचा को " इस 'चाम शास्त्र' ने ही हमें 'कामशास्त्र' दिया । कितना आश्चर्यजनक है  लोगों ने एक उम्र, एक युग, एक कालखंड महिलाओं- सौंदर्य और उनकी प्रेम- दशाओं के विश्लेषण करने में निकाल दी । इसके विपरीत किसी भी नारी ने दो लाइन लिखकर किसी भी 'नर' के सौंदर्य का वर्णन कर उसे 'नारायण' नहीं बनाया... अपितु 'नर'को 'वानर' बनाते हुए नियमित देख रहे हैं ।...अस्तु । प्रगतिवाद से पूर्व ग़ज़ल में भी लगभग यही हुआ । प्रगतिव
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आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत पैरोडी के शास्त्रीय निहितार्थ ---------------------------- पैरोडी को हास्य की एक समृद्ध विधा माना गया है । पैरोडी अर्थात नकल-अनुकृति मिमिक्री ;शब्द, भाव, भाषा, स्थिति और ध्वनि की हो सकती है । नकल को हास्य का जनक भी कहा गया ।पाश्चात्य देशों में इसे Burlesque 'बर्लेस्क'कहा गया अर्थात साहित्य, संगीत, नाटक आदि के अंतर्गत हास्यास्पद प्रयोग । 'बर्लेस्क' इतावली  'बर्लेस्को' से निकला है , जो बदले में इतावली 'बुर्ला' से लिया गया है,जो हास- परिहास-उपहास से संबंधित है। 'बर्लेस्क' को कैरीकेचर और पैरोडी के व्यापक अर्थ में भी लिया जाता है। पैरोडी में किसी भी विशिष्ट शैली या लेखक की ऐसी हास्यास्पद नकल- अनुकृति होती है जो गंभीर भावों को हास्य में परिवर्तित कर देती है । ऑर्थर साइमन जैसे विद्वान पैरोडी के बारे में लिखते हैं कि Love-Admire and Respect  the original admiration and Laughter is the very essance of the act of art of Parody अर्थात पैरोडी में मूल के प्रति प्रेम और आदर में कमी नहीं आनी चाहिए। अच्छी पैरोडी का सौंदर्य उसकी म