धर्म और सनातन धर्म का सार
यह है 'धर्म और सनातन धर्म' का सार...हम कितने 'धार्मिक' और कितने 'सनातनी??😊
1.महर्षि वशिष्ठ :-शिष्ट महापुरुष जो आचरण करते हैं ,वही धर्माचरण के रूप में प्रमाण मानने योग्य है ।
2 महर्षि मनु:- मनु ने आचार को कर्तव्य बताया है। उन्होंने इन दस तत्वों को धर्म कहा है। धृति( धैर्य- संतोष), क्षमा (दूसरे के अपराध को सह लेना- अपराधी को माफ करना), दम (मन को निर्विकार रखना), अस्तेय (दूसरे की वस्तु की याद नहीं करना ), शौच( शरीर को शुद्ध रखना) इंद्रिय निग्रह (जितेन्द्रियता), धी (भलीभांति समझना) विद्या, सत्य और अक्रोध ( क्रोध का कारण होते हुए भी क्रोध नहीं करना) इनको धर्म कहा है ।
3 वेदव्यास:- दान ही धर्म है।
4 महर्षि आपस्तंब :-उत्तम आचरण ही धर्म है। जिसका आचरण ही खराब है, वह कोई धर्म नहीं कर सकता ।
5 पाराशर स्मृति:- जो मनुष्य आचार से भ्रष्ट है, उनसे धर्म विमुख हो जाता है ।
6 अत्रि स्मृति:- योग ही सर्वोत्कृष्ट धर्म है।
7 मार्कण्डेय स्मृति:- अहिंसा ,सत्य और सदव्यवहार ही धर्म है।
8 दक्ष स्मृति:- अतिथि सेवा ही धर्म है।
9 विश्वामित्र स्मृति :-उचित समय पर नैमित्तिक कार्य ही धर्म है ।
10 बृहस्पति स्मृति:- गोदान, भूमि दान और विद्या दान ही धर्म है ।
11 याज्ञवल्क्य स्मृति: अपने आप को जानना आत्म दर्शन ही परम धर्म है ।
12 रामायण:- नैतिकता, सदाचार और सत्य कर्म ही धर्म है ।
13 महाभारत:- सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं ।
14 महाभारत:-धर्म उन शाश्वत सिद्धांतों के समुदाय को कहते हैं, जिनके द्वारा मानव समाज सन्मार्ग में प्रवृत होकर उन्नतशील बनकर अपने अस्तित्व को धारण करता है।
15 रामचरितमानस:- परोपकार ही धर्म है।
हिंदू ,मुसलमान, ईसाई या यहूदी ....ये धर्म नहीं है, ये एक तरह की जीवन पद्धतियां है। इस बात को हिंदुओं के संदर्भ में 1995 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है । धर्म कोई सा भी हो, इन विशेषताओं-परिभाषाओं की पगडंडियों पर चलकर ही अपने लक्ष्य तक पहुंचता है ।
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