Posts

Showing posts from June, 2021

चुटकला... 'चोटकला' और हास्य का मंत्र

Image
अंतरराष्ट्रीय चुटकला ​दिवस पर विशेष हास्य का लघुतम स्वरूप ही चुटकला है। यह लोकगीतों,  मुहावरों और लोकोक्तियों की भांति सार्वजनिक संपत्ति है। हास्य -व्यंग्य प्रधान चुटकुले में वचन  विदग्धता के साथ यमक- श्लेष जैसे आलंकारिक प्रयोग देखे जा सकते हैं। संक्षिप्तता और लघुता ही चुटकुले का वास्तविक  और श्रेष्ठ गुण होता है । चुटकले के लिए प्राय: इन वाक्यों से अधिक कहने- सुनने के लिए कुछ  उपलब्ध नहीं है। इसी आलोक में वर्तमान कालखंड में इसकी निष्पक्ष और सही विवेचना आवश्यक है । यह लोक विधा ,लोक विदों द्वारा लोक रंजन के लिए निर्मित है । यह दृष्टव्य है कि जो हास्य के कारक हैं; 'विट' ,'फेंटेसी' अलेगरी' और 'एब्सर्डिफिकेशन' यही गुण चुटकले के मूल में होते हैं । यह कहना समीचीन होगा कि भक्ति में जो महत्व, प्रभाव और लाभ बड़े  स्रोत्र अथवा स्तुति का है; वही महत्व संक्षिप्त मंत्रों अथवा बीज मंत्रों का होता है । इसी रूप में चुटकले हास्य रस के मंत्र अथवा बीज मंत्र हैं । समान रूप से लाभ, प्रभाव और गुणकारी। यह 'चुटकला' नहीं  'चोटकला' है अर्थात् एक ऐसी लेखन कला; जो 'सर

पक्षी दो प्रकार के

Image
'पक्षी' दो प्रकार के होते हैं। एक सत्ता 'पक्षी'  और एक 'विपक्षी'। सत्ता 'पक्षी' पंख युक्त होता है; वो चहचहाता है। 'विपक्षी' पंख हीन होता है, वो मात्र फड़फड़ाता है और जब भी समय मिलता है, गलियाता है, लतियाता है, जुतियाता है, और घिघियाता है। यही उसका पक्षीयार्थ (पुरुषार्थ की तरह) है। यह दुनिया 'टर्मिनोलॉजी' से ही चलती है। राजनीति तो 'भाषिक छल' का ही पुण्य पर्याय है। विशेष रूप से 'सत्ता पक्षी' उनमें गज़ब की परिवर्तन क्षमता होती है, पता नहीं कब उनका मूड बन जाए और वो बुद्ध के 'शून्य' को शंकर का 'ब्रह्म' बना दें। यह उनके अलावा परमपिता  ब्रह्मा को भी पता नहीं होता। विपक्षी में भी अद्भुत सामर्थ्य होता है, जिसके डर से सत्तापक्षी एकांत में ही अपने बाप को बाप कह सकते हैं। अगर उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने बाप को बाप कहा; तो विपक्षी कहेंगे, 'केवल बाप को बाप कहना पर्याप्त नहीं है, उसे बाप मानना भी पड़ता है।' सरकार कहे कि हम अपने बाप को बाप मानने को तैयार हैं, तो विपक्षी कहेंगे; 'सरकार के लोग मौकापरस्त हैं; ये म

नाट्यशास्त्र

Image
18वीं शताब्दी में कलकत्ता में सर विलियम जोन्स मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने किसी तरह संस्कृत पढ़ी और 1787 में शाकुन्तल का संपादन और अंग्रेजी अनुवाद का काम शुरु किया था। शाकुन्तल का छपना एक क्रांतिकारी घटना थी। सर विलियम जोन्स का अनुवाद जर्मनी में पहुंचा। उससे दुनिया की भारत के बारे में दृष्टि बदली और कला साहित्य और संस्कृति में बदलाव आया। इससे भारत को लेकर भारतवासियों की भी दृष्टि बदली।  उन्होंने लिखा कि अगर उन्हें नाट्यशास्त्र की पुस्तक मिल जाती तो वो और अधिक बेहतर लिख सकते थे। तब दुनिया ने नाट्य शास्त्र को खोजना शुरू किया। 19वीं शताब्दी के मध्य तक तो अनुसंधानकर्ताओं को नाट्य शास्त्र अप्राप्त ही था। भारत भर से लगभग 40 पांडुलिपियों के आधार पर नाट्यशास्त्र का प्रामाणिक संस्करण चार खंडों में 1926-1964 के मध्य बड़ौदा से प्रकाशित हुआ। नाट्य विधा को एक नया आयाम मिला।  भरत मुनि और नाट्यशास्त्र नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि हैं। उनके अनुसार संसार की कोई ऐसी कला, ज्ञान, शिल्प, विद्या, योग कर्म नहीं है, जो नाट्य शास्त्र का अंग न बन सके। नाट्य में असंख्य ज्ञान सागर समाहित हैं। नाट्य पंचम वेद है। नाट्य