पक्षी दो प्रकार के

'पक्षी' दो प्रकार के होते हैं। एक सत्ता 'पक्षी'  और एक 'विपक्षी'। सत्ता 'पक्षी' पंख युक्त होता है; वो चहचहाता है। 'विपक्षी' पंख हीन होता है, वो मात्र फड़फड़ाता है और जब भी समय मिलता है, गलियाता है, लतियाता है, जुतियाता है, और घिघियाता है। यही उसका पक्षीयार्थ (पुरुषार्थ की तरह) है।

यह दुनिया 'टर्मिनोलॉजी' से ही चलती है। राजनीति तो 'भाषिक छल' का ही पुण्य पर्याय है। विशेष रूप से 'सत्ता पक्षी' उनमें गज़ब की परिवर्तन क्षमता होती है, पता नहीं कब उनका मूड बन जाए और वो बुद्ध के 'शून्य' को शंकर का 'ब्रह्म' बना दें। यह उनके अलावा परमपिता  ब्रह्मा को भी पता नहीं होता।

विपक्षी में भी अद्भुत सामर्थ्य होता है, जिसके डर से सत्तापक्षी एकांत में ही अपने बाप को बाप कह सकते हैं। अगर उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने बाप को बाप कहा; तो विपक्षी कहेंगे, 'केवल बाप को बाप कहना पर्याप्त नहीं है, उसे बाप मानना भी पड़ता है।' सरकार कहे कि हम अपने बाप को बाप मानने को तैयार हैं, तो विपक्षी कहेंगे; 'सरकार के लोग मौकापरस्त हैं; ये मौके पर गधे को भी बाप बना लेते हैं।'

एक दिन सरकार ने नवाचार के अंतर्गत यह कह दिया कि 'हमारी सरकार प्रयोग धर्मी है- विकासशील है, हम राजनीति के 'शून्य' को 'एम्प्टी स्पेस' में बदल देंगे। इसी क्रम में हमने पूर्ववर्ती सरकार की 'दो और दो चार योजना' की समीक्षा की, उसमे बहुत सी खामियां थीं। उस योजना को समाप्त करके हमारी सरकार एक नई और कल्याणकारी 'तीन और एक चार योजना' लेकर आ रही है।

विपक्षियों ने अपने धर्म का निर्वाह करते हुए कहा, 'यह सरकार अहंकारी, हठधर्मी और गरीबों को अनदेखा करने वाली है, जो सत्ता मद में 'तीन और एक चार योजना' ला रही है, अच्छा होता कि ये जनता के हित मे 'एक और तीन चार' योजना लाती।

मित्रों, सरकार चाहती तो 'डेढ़ और ढाई चार योजना' और 'सवा और पोने तीन चार' योजना भी ला सकती थी।

सरकार सत्ता के नशे में लोकतंत्र की गणित भूल गई है। मित्रों, हमने और हमारी सरकार ने हमेशा से दो और दो चार ही किये है, जब तक कि पार्टी अध्यक्ष और बागी विधायक उसे दो और दो पांच नहीं कर दें।' 

लोकतंत्र में पक्षी- विपक्षी की इतनी बारीक भूमिका है। लोकतंत्र मे इनकी भूमिका एक दूसरे की  पतंग किसी भी तरह काटना, लूटना और उड़ाना मात्र होती है। सत्ता पक्षी और विपक्षी के बीच जनता 'पतंग' मात्र है, जिसका उड़ना, कटना और लुटना तय है।

Comments

Popular posts from this blog

शरद जोशी जी की जयंती (21 मई) के अवसर पर... हास्य-व्यंग्य का पहला 'शो-मैन'

वेद-शास्त्रों में हास्य

कवि-कविता और कवि सम्मेलन का इतिहास