पुलिस का डंडा,वाद्ययंत्र और पर्सनल सेंगोल

पुलिस का डंडा- वाद्ययंत्र और 'सेंगोल'😊😊

पुलिस का 'डंडा'( दंड ) एक विशेष प्रकार का 'वाद्य यंत्र' है, अर्थात बजाने का 'बाजा' है । पुलिस जब यह 'दंड वादन' करती है, तो अपराधियों के शरीर में स्थित दृश्य और अदृश्य छिद्रों में से विभिन्न प्रकार की राग-रागिनियाँ निकलती हैं ।😊😊
पुलिस महान संगीत प्रेमी होती  है । वह भिन्न-भिन्न मुद्राओं में इस वाद्य यंत्र को 'बजाती' है और  'गाती' है । इस प्रकार प्रायः वह गाती-बजाती है।
शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पुलिस ने भारी मात्रा में 'डंडों' की खरीद की है, नेताओं ने 'गुंडो' की और पार्टियों ने 'झंडो' की ।
डंडा पुलिस वालों पर्सनल 'सेंगोल'( संसद में स्थापित धर्म दंड ) यह 'दंड' शासन में दुशासन को भी अनुशासन में रखता है । डंडा धर्मरक्षक और धर्मनिरपेक्ष है । डंडा त्वचा और हड्डियों से स्नेह मिलन के समय 'जाति' और वर्ग नहीं देखता । डंडा जब 'नश्वर' शरीर से मिलता है ,तो घोर नास्तिक को भी 'अल्लाह' और 'ईश्वर' का 'सस्वर' स्मरण  कराता है।
कामंदक के 'नीतिसार'  में 'दंड' के तीन भेद हैं । धन हर लेना, शारीरिक कष्ट देना और वध करना । पुलिस इन नीतियों के साथ सर्वाधिक भरोसा 'कूट'नीति' पर करती है अर्थात जमकर 'कूटो' जब तक उनकी 'अस्थि' और 'हस्ती' टूट- फूट नहीं जाए।😊😊😊
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