नाट्यशास्त्र और प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी

भरतमुनि के अनुसार नाटक त्रिलोक का भावानुकीर्तन है । जिसमें धर्म ,अर्थ, काम मोक्ष के अतिरिक्त क्रीड़ा -कौतुक एवं सभी रस अपनी पूर्णता के साथ विद्यमान हैं । सात्त्विक प्रवृत्ति वालों के लिए इसमें धर्म है और तामसिक के लिए काम  ।इसमें दुष्ट दलन है, तो खल निग्रह भी ।  यह सामान्य व्यक्तियों के लिए 'प्रदर्शन' है, ज्ञानियों के लिए 'दर्शन' है और अज्ञानियों के लिए 'मार्गदर्शन' । इसमें सामर्थ्यवान् के लिएअनुमोदन  है, पथ भ्रष्टों के लिए प्रबोधन है,उल्लास का उद्बोधन है और आत्मा का शोधन है ।
कालिदास के अनुसार यह भाँति- भाँति  की  रुचि संपन्न लोगों के लिए समान रूप से अनुकरणीय  है । "नाट्यम भिन्नरुचेर्जनस्य बहुधाप्येकम   समाराधानम्"
महाकवि कालिदास के अनुसार यह आँखों का सुंदर यज्ञ है ।"देवानामिदमामन्ति मुनय: कान्तं क्रतुं चाक्षुषम"। नाट्य शास्त्र सामान्य से असामान्य बनने की सुखद यात्रा है  ।इसके अध्ययन से साधारण व्यक्ति भी कुशल ,वाक्पटु, पंडित और थकान को जीतने वाला हो जाता है । ऐसा ही व्यक्ति अभिनेता बनने के योग्य है । "कुशला ये विदग्धाश्च प्रगल्भाश्च जितश्रमा:।"
किसी भी शास्त्र का ध्येय सत्य का प्रदर्शन होता है, किंतु यह पहला और अंतिम शास्त्र है, जिसका ध्येय सत्य के साथ आनंद का भी प्रदर्शन है और आनंद भी कल्याण की कामना के साथ । इसी कल्याण की कामना के साथ प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी  कृत नाट्यशास्त्र के संक्षिप्त पाठ का संपूर्ण हिंदी अनुवाद आपके हाथों में  है ।प्रोफेसर त्रिपाठी... यह नाम संस्कृत और नाट्यशास्त्र का समानार्थी नाम है । प्रोफेसर त्रिपाठी संस्कृत के व्यक्ति नहीं, संस्कृत की अभिव्यक्ति हैं । नाट्य की शक्ति और शास्त्रों की अनुरक्ति हैं । वे भाव- भाषा -बोध और  शोध की दृष्टि से तर्कों  से परे हैं ,किंतु सहज ग्राह्य हैं । नाट्य प्रेमियों के हृदय में यह पुस्तक और प्रोफेसर त्रिपाठी का नाम ,दोनों आजीवन अंकित रहेंगे... इसी विश्वास के साथ....आज़ादी के अमृत महोत्सव की अनंत शुभकामनाएं ।

संजय झाला
www.sanjayjhala.com

Comments

  1. आपके भाव और आपका अंदाज मिल कर इसे उत्सव से महोत्सव का रूप दे दिया। सचमुच आपकी लेखनी साक्षात माँ सरस्वती की कृपा है

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  2. क्या सुघड़ भाषा प्रवाह है। अहा !! आनन्द आ गया

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  3. नाट्य शास्त्र को सामान्य जन के लिए सुगम बनाने हेतु आभार.... आपका (श्री राधा वल्लभ जी एवं श्री संजय झाला जी) सान्निध्य जीवन में अनमोल धरोहर के रूप में मार्गदर्शक है ।

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  4. नाट्य के भाव पक्ष का सारगर्भित विवेचन प्रवाह पूर्ण और प्रभावी भाषा. साधुवाद .

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