हिन्दी दिवस विशेष
हिन्दी ने अपनी 'माँ' संस्कृत से ग्रहण किया गुण-धर्म और स्वरूप
यह सुस्थापित सत्य और तथ्य है कि हिंदी भाषा की आदि जननी संस्कृत है । संस्कृत,पाली,प्राकृत और अपभ्रंश जैसे भाषाई महासागर में अवगाहन करती हुई हिंदी आज दुनिया की दिव्य सौंदर्यमयी और परिष्कृत भाषा के रूप में प्रकट हुई है ।
हमें यह भी जान लेना आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं में (उर्दू या आधुनिक कश्मीरी जैसी भाषाओं को छोड़कर) 50 से 80% शब्द पहले से ही संस्कृत से आए हैं, यह भी सर्वथा सत्य है ।
भारत की संविधान निर्मात्री सभा में इस बात पर विवाद हुआ कि संस्कृतनिष्ठ हिंदी से उर्दू भाषी तथा अन्य वर्गों को कठिनाई होगी। इसलिए उन्होंने उर्दू मिश्रित हिंदी का एक आंदोलन शुरू किया और उस हिंदी को 'हिंदुस्तानी' नाम दिया। जिसका विरोध श्री पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविंद दास जैसे विद्वानों ने किया और हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का अभियान छेड़ा और परिणाम स्वरुप 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने निर्णय दिया कि भारत की राजभाषा हिंदी होगी ,'हिंदुस्तानी' नहीं। संविधान के अनुच्छेद 351 में स्पष्ट किया गया कि हमारे द्वारा स्वीकृत हिंदी की शब्दावली जब पूरा आकार लेगी तो उसमें सभी भारतीय भाषाओं के शब्द आएंगे । किंतु अंततोगत्वा बेटी (हिंदी) ने अपनी मां (संस्कृत) के रूप-स्वरूप और सौंदर्य को ही ग्रहण कर अपनी शब्दावली को समृद्ध किया ।
1961 में स्थापित वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक शब्दावली के स्थाई आयोग ने भाषा शास्त्रियों की 50 वर्ष से अधिक की अनवरत साधना से विज्ञान मानविकी, कृषि ,इंजीनियरी, वानिकी आदि की शब्दावलियाँ बनाई । संविधान के हिंदी अनुवाद के साथ ही अन्य भाषाओं में किया जा रहे अनुवाद की देखरेख वाले विधि मंत्रालय के राजभाषा विधायी आयोग ने विधि शब्दावली बनाई । इन्हीं के महनीय प्रयासों से 9 -10 लाख शब्दों की पारिभाषिक शब्दावलियाँ देश में विद्यमान हैं । इन्हीं शब्दावलियों के आधार पर ही भारत भर की सभी भाषाओं में उच्च शिक्षा दी जा रही है ।
भाषा मर्मज्ञ देवर्षि कलानाथ शास्त्री जी का मानना है कि विश्व भाषाओं में होने वाले सतत परिवर्तन को समझना पाणिनि की कृपा अर्थात प्रकृति(धातु) प्रत्यय और उपसर्गों के व्युत्पादन से अर्थ की विवक्षानुसार शब्द निष्पादन से ही किया जा सकता है । वे कहते हैं,
"प्रशासन कार्यों में आज्ञा, अनुमति, सहमति आदि देने के लिए अंग्रेजी में कितने शब्द चल निकले हैं, जिनकी अर्थ छायाएँ अलग- अलग हैं। आवेदन को accept करना अलग है, agree करना अलग, allow करना, permit करना, approve करना, sanction करना, concur करना, grant करना, सभी अलग- अलग अर्थों में आते हैं। सबका तात्पर्य है मंजूरी। किन्तु मंजूर शब्द की एक लाठी से सभी भैंस नहीं हाँकी जा सकतीं । इसलिए इन सबके लिए हिंदी में सुस्पष्ट,बोधगम्य और संस्कृतनिष्ठ पर्याय सुनिर्धारित हैं ,जो हिंदी की प्रतिष्ठा को किसी भी भाषा से बड़े रूप में निम्नानुसार स्थापित करते हैं:-
Agreement संविदा, सहमति
Consent संमति
Acceptance स्वीकार
Sanction स्वीकृति
Permit अनुज्ञा
Licence अनुज्ञप्ति
• Allow अभ्यनुज्ञा
Concurrence सहमति
Assent अनुमति
Approve अनुमोदन
श्री शास्त्री कहते हैं कि संस्कृत विश्व की समृद्धतम भाषा है और हिंदी उसकी बेटी है,तो बेटी को माँ से उसके गुण- धर्म ग्रहण करने का पूरा अधिकार है । इसलिए आज अनुदिन हिंदी समृद्ध होकर एक वैश्विक भाषा होती जा रही है ।
आइये ...वैश्विक भाषाई आलोक में हिंदी की स्थिति पर दृष्टिपात करते हैं:-
1 यह दुनिया में लगभग 62 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली दूसरी सबसे सबसे बड़ी भाषा है। सबसे अधिक अनुमानित 111 करोड़ मंदारिन बोलने वाले हैं।
2 मोटे तौर पर अमेरिका में हिन्दी बोलने वाले अनुमानित 10 लाख, मॉरीशस में 7.50 लाख ,दक्षिण अफ्रीका में 9 लाख लोग हैं । न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।
3 दयानंद सरस्वती वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दी को स्वभाषा का दर्जा दिया ।
4 संविधान की धारा 351 में यह स्पष्ट प्रावधान है कि राजभाषा हिंदी की शब्दावली प्रमुखत:संस्कृत से आएगी।
5 शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित कम से कम 80% शब्दावली संस्कृत के धातुओं व्याकरण और प्रयोग पर आधारित है ।
6शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित शब्दावली में सर्वाधिक योगदान पंडित काशीराम शर्मा जी का रहा ,जो कि चूरु राजस्थान के थे ।
7 अंग्रेजों द्वारा खोले गए विद्यालयों / विश्वविद्यालयों की शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी था । हिंदी में बी. ए या एम. ए की परीक्षा भी प्रथमत: अंग्रेजी माध्यम से ही ली जाती थी ।
8 हिंदी की परीक्षाएँ हिंदी माध्यम से ली जाएँ, इसके लिए नागरी प्रचारिणी सभा, काशी और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग को आंदोलन चलाने पड़े ।
9 कोलकाता विश्वविद्यालय में 1918 में हिंदी को एक स्नातकोत्तर विषय के रूप में स्वीकृत किया गया, तब उसकी परीक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी था ।I
10 कामिल बुल्के ने सबसे पहले त्रुटिहीन और बेहतरीन अंग्रेजी हिन्दी शब्दकोश तैयार किया, जो मूलतः एक पादरी थे और बेल्जियम के रहने वाले थे।
11हिंदी भाषा को विश्व में लोकप्रिय बनाने में भारतीय फिल्मों, फिल्मी गीतों, कवि सम्मेलनों, रामायण -महाभारत जैसे धारावाहिकों, हिंदी समाचार पत्रों और हिंदी न्यूज़ चैनल्स का भी बहुत बड़ा योगदान है ।
12राजा हरिश्चंद्र भारत की पहली हिंदी फिल्म थी ।
13 पृथ्वीराज रासो हिंदी का पहला महाकाव्य है ।
14.8 जनवरी 1982 को एक अनौपचारिक बैठक हिंदी के प्रशासन में प्रयोग को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की पहल पर हुई । प्रसंगवश यह बिंदु भी आया कि गत 25 -30 वर्षों के अनुभव के आधार पर हिंदी राज्यों में जो सरल शब्दावली चल रही है, उसकी छानबीन कर हिंदी का एक प्रशासनिक शब्दकोश बना लिया जाए । इसी के तहत 1986 में समेकित प्रशासन शब्दावली प्रकाशित हुई ।
15.भारत सरकार ने गत 50 वर्षों में भारतीय भाषा की शब्दावली हिंदी के लिए बनाई है ,वह 85% संस्कृतनिष्ठ है। वह समस्त भारत में एकरूपता के लिहाज से बनाई गई है।
16श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने 1977 में विदेश मंत्री के रूप में और 2002 में प्रधानमंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया ।
17हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा नहीं है ।
18हिन्दी में सबसे पहली एमए की डिग्री नलिनी मोहन सान्याल को मिली थी। हिन्दी में पहली डीलिट् डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल को कबीर पर मिली थी।
19 फीजी का संविधान हिन्दी में भी है।
20 आबू धाबी ने अदालतों में तीसरी भाषा का दर्जा हिन्दी को दिया हुआ है।
21 अमेरिका के चार राज्यों में हिंदी पढ़ाई जा रही है और 1000 स्कूलों में हिंदी पढ़ाया जाना प्रारंभ किया जाना है।
यह अत्यधिक सुखद है कि जी-20 बैठक के दौरान यह प्रकरण उठा कि
दुनिया के 5.1 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं। इनमें करीब 15% ऐसे हैं, जो भाषा की बाधा के कारण इंटरनेट के ग्लोबल फायदों से वंचित हैं। दुनिया में अंग्रेजी बोलने वाले लोग सिर्फ 25% ही हैं, फिर भी सभी वेबसाइट्स या डोमेन नेम अंग्रेजी में ही क्यों हैं? भारत की मेजबानी में हो रहे दो दिवसीय जी-20 समिट के दौरान इंटरनेट पर अंग्रेजी के प्रभुत्व पर ऐसे ही कई तीखे सवाल उठे।
यदि इस प्रस्ताव की क्रियान्विति होती है तो हिंदी का विश्व में वह स्थान होना होगा ,जो वास्तव में होना चाहिए ।
संजय झाला
www.sanjayjhala.com
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